कश्मीर के लिए

राजस्थान पत्रिका के ३१ जुलाई, २०१९ के संस्करण  में मूर्धन्य पत्रकार श्री भुवनेश जैन का "आतंकवाद से दूरी बनाने लगे कश्मीरी युवा" सम्पादकीय लेख प्रकाशित हुआ जो निःसंदेह सत्य और सर्वथा उचित लेख है।  सम्पादकीय लेख में श्री भुवनेश जैन ने कश्मीर घाटी की आर्थिक बदहाली और युवाओं की मनोदशा का उल्लेख करते हुए लिखा है की क्यों कश्मीर घाटी बदहाली के कगार पर आ गई, कश्मीरी युवा क्यों दिग्भ्रमित हो गए और इस सबके पीछे कौन लोग जिम्मेदार हैं? पिछले पांच साल में एनडीए सरकार ने घाटी के युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए जो भगीरथ प्रयास किये हैं वह तो काबिलेतारीफ हैं ही लेकिन दूसरी ओर सेना और सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल जिसे मौकापरस्त नेताओं और तथाकथित मानवाधिकार आयोग  ने बुरी तरह से तोड़ कर  था, को बनाये रखने के लिए मोदी सरकार ने सेना और सुरक्षाबलों को परिस्थिति के अनुसार कार्यवाही करने के लिए खुली छूट दी।  कार्यवाही के  लिए अब सेना और सुरक्षाबलों को केंद्र में बैठे नेताओं के आदेश या इच्छा  प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। सेना, अर्धसैनिक बलों और स्थानीय पुलिस के बीच बेहत्तर समन्वय और रणनीति के कारण उग्रवादियों का तंत्र बिखर गया।  आतंकवाद के भस्मासुर के पालनहार तथाकथित देशभक्त जो कश्मीर और पूरे देश में फैले हैं, पर भी शिकंजा कसना  भी जरूरी था जिसे मोदी सरकार ने कूटनीति का इस्तेमाल करते हुए बखूबी इंजाम दिया।  इस समय ये ये छद्मवेशी नेता बौखलायें हुए हैं।  एक तरफ इनके ऊपर उग्रवादिओं का दबाब है तो दूसरी ओर भारत सरकार से मिल रही सुविधाओं को खोने का डर सता रहा है।  भस्मासुर के पालनहार स्वयं भारत सरकार की प्रदत्त अभेद्य सुरक्षा घेरे में महफूज़ रहते हुए आतंकवाद का कारोबार चला रहे हैं और  इनके परिजन आतंक की छाया से सैकड़ों मील दूर विदेशों में निर्भय होकर विद्याध्ययन कर रहे हैं या व्यवसाय कर रहे हैं। इनको जनता के सामने बेनकाब करना जरूरी है।  कश्मीरी अवाम इन नेताओं से पूछे कि क्यों नहीं उनके बच्चे कश्मीर में  रह कर पढ़ रहे हैं उनके बच्चों के साथ।  अगर कश्मीर की अवाम इनकी अपनी है तो फिर इन्हें किस का डर है।  इन्हें दोनों हाथों में लड्डू चाहिए।  घाटी में उग्रवादिओं के खिलाफ की जा रही कार्यवाही, दो सर्जिकल स्ट्राइक और छद्मवेशी नेताओं की नजरबंदी से बाकी नेताओं की  समझ  आ जाना चाहिए की कश्मीर की अवाम इनकी चाल को  गई है और  पीछे हटने वाली नहीं है।   
केन्द्र सरकार द्वारा कश्मीर घाटी के युवाओं को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए चलाये जा रहे कल्याणकारी योजनाओं के चलते युवाओं का आतंकवादियों से और छोटी सी जिंदगी की कल्पना से मोहभंग हो रहा है। यह शुभ संकेत है। वह दिन दूर नहीं है जब पंजाब के आतंकवाद की तरह कश्मीर के आतंकवाद की कमर टूट जायेगी और घाटी में अमन और चैन की खुशबू फिज़ा में होगी। रूख बदलती बयार बतला रही है कि 70 साल का घना अँधेरा दूर हो रहा है अमन और चैन घाटी में लौट रहा है। 

बिपिन चन्द्र जोशी
बंगलौर

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