राजस्थान पत्रिका 1 अगस्त, 2019 के अंक में श्री कर्पूर चंद्र कुलिश का सम्पादकीय "रेवड़ियां कब तक" राजनैतिक पार्टियों के मर्म पर चोट है।  मुझे पता नहीं है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, किसी भी राजनैतिक पार्टी का अध्यक्ष आदि ऐसे सम्पादकीय को पढ़ कर क्या सोचते हैं और उन्हें अपने कृत्य पर माननीयों का बिखरता अभिमान होता भी है या नहीं लेकिन एक आम मतदाता के नाते में मैं जरूर सोचता हूँ कि आखिर कब तक सत्ता को हथियाने के लिए राजनीति को ढाल बनाते रहेंगे।  कमोवेश सभी पार्टियों का यही रवैया है।  राजनीति को हथियार बनाकर सत्ता में काबिज पार्टियों की घोषणायें मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह होती हैं लेकिन हकीकत में ऐसा होता ही नहीं है।  दिल्ली का मतदाता होने के नाते मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुख्यमंत्री केजरीवाल गत सालों में बड़ी-बड़ी घोषणायें करते रहे जो सिर्फ कागजी थी।  अपने वायदों पर विफल होने पर मोदी सरकार को खूब कोसा।  जी भरकर घोषणायें लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया कि जमीनी स्तर पर कैसे लागू किया जाये। अपनी हर कमी और विफलता के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया की मोदी उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं।  जब चुनाव सिर पर आ गए तो फिर वायदों की बौछार करने लगे और लागू करने के लिए भी ठोस प्रयास करने शुरू कर दिए।  श्री अरविन्द केजरीवाल जी को अब दिल्ली की जनता समझ चुकी है।  अब उन्हें अवसर शायद ही मिले।

बिपिन चंद्र जोशी
बंगलौर 

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