आरटीआई की सार्थकता या मजाक
मैंने रेलवे बोर्ड के जन सूचना अधिकारी से आरटीआई के माध्यम से (1 ) कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम आन इमरजेंसी (सी.टी.एस.ई.) में 14 जुलाई, 2016 के बाद जो भी आदेश/शुद्धिपत्र/सुधार आदि हुए हैं की सत्यापित प्रतिलिपि, (2 ) सी.टी.एस.ई. बेंगलुरु में प्रारम्भ हुआ या नहीं जैसी कुछ सूचनायें मांगी थी। हैरत और आश्चर्य की बात है की रेलवे बोर्ड ने मुझसे कहा है की मुझे मांगी गयी सूचना की प्रतिलिपि लेने के लिए रेलवे बोर्ड, दिल्ली आना होगा। मैं बेंगलुरु में हूँ और मेरे हार्ट में दो स्टंट और एक कैप पड़े हैं। रेलवे की 34 साल की सेवा के बाद भी मैं बेंगलुरु में अपने इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल के चक्कर लगा रहा हूँ जबकि 80 हजार रुपये सेवानिवृति के बाद इलाज़ के लिए ग्रेचुएटी से काटे जा चुके हैं।
सरकारी योजनायें कागजों में बहुत ही आकर्षक और लुभावनी होती है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। उन योजनाओं को लागू करने में अफसरसाही और बाबूगिरी इतनी जटिलता पैदा कर देते हैं कि योजनायें दिवास्वप्न साबित होती हैं।
सरकारी योजनायें कागजों में बहुत ही आकर्षक और लुभावनी होती है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। उन योजनाओं को लागू करने में अफसरसाही और बाबूगिरी इतनी जटिलता पैदा कर देते हैं कि योजनायें दिवास्वप्न साबित होती हैं।
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