माननीयों का बिखरता अभिमान

माननीयों का बिखरता अभिमान 

माननीय उच्चत्तम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश श्री  रंजन गोगई ने उन्नाव बलात्कार कांड में जिस तेजी और कठोर रूख अपनाते हुए पुलिस और प्रशासन के लिए समय सीमा निर्धारित की है, प्रसंशनीय है।  उच्चत्तम न्यायालय  के इस निर्णय और रूख से लोक तंत्र की गरिमा मजबूत हुई और न्याय पालिका पर विश्वास जगा है।  कोर्ट के आदेश ने विधायक महोदय के रसूख और अभिमान  चूलें हिला कर रख दी।  लेकिन हमारी पुलिस की व्यवस्था और प्रणाली पर एक प्रश्न चिन्ह जो हमेशा से लगा रहा वह और बड़ा हो गया।  यह राजनीति की नाव पर सवार होकर सत्ता पर काबिज तथाकथित और छद्मवेशी लोगों का पुलिस और प्रशासन पर दबाव और प्रभाव ही  है की बलात्कार पीड़िता की 9 माह तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई और 02 साल तक ट्रायल नहीं होने दिया। यहां तक की पीड़िता का प्रधान न्यायाधीश को लिखे आवेदन को भी दबा दिया गया।  जब इतना सब हो गया तो तब सत्तारूढ़ पार्टी ने विधायक महोदय को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जबकि यह काम आज से दो साल पहले पार्टी ने कर देना चाहिए था।  क्यों हमारा कानून भू माफिया, कातिलों, दबंगों, रिश्वतखोरों, बाहुबलियों के पैरों तले सिसक रहा है।  क्या यह जरूरी है की जब तक कोई घटना, अपराध, दुर्घटना मीडिया या न्यायपालिका की नजर में न आये  तब तक पीड़ित को न्याय नहीं मिलेगा।  आज स्थिति यह हो गई है कि बिना न्यायपालिका के हस्तक्षेप के किसी को न्याय  उपलब्ध नहीं है।  किसी को कानून का डर नहीं  तो किसी को न्याय नहीं।  
देश  जनता ने बीजेपी को स्पष्ट जनादेश देकर अगले पांच साल तक देशवाशियों की सेवा करने का मौका दिया।  अब मोदीजी और उनकी पार्टी को जनता की आकांक्षाओं में खरा उतरना है।  कानून पर कानून बनाकर जनता के ऊपर लादने से सुशासन आने से रहा।  कम से कम कानून लेकिन कठोर और उनका शत प्रतिशत अनुपालन ही सुशासन की कामयाबी होती है।  सबसे ज्यादा गंभीर बात है कि धनबल, बाहुबल से सत्ता काबिज सांसदों और विधायकों का व्यवहार दिन प्रतिदिन अमर्यादित और अक्षम्य होता जा रहा है।  विशेषकर बीजेपी के सांसदों और विधायकों का।  प्रधानमन्त्री जी को यह सुनिश्चित करना होगा कि अच्छे लोगों का पार्टी में स्वागत किया जाये लेकिन भू माफिओं, बाहुबलियों, कातिलों, दबंगों, रिश्वतखोरों जैसे समाजकंटकों के लिए पार्टी का दरवाजे बंद रहने चाहिए।  ऐसे लोगों के बगैर देश को चलाया जा सकता है। अपने काले धंधों को सुरक्षित रखने के लिए राजनीति की वैशाखी के सहारे सत्ता पर काबिज हो जातें हैं और इनके लिए सत्ता सबसे महफूज जगह होती है। क्योंकि जब इनके पास सत्ता की ताकत होती है तो पुलिस और प्रशासन इनकी जेब में होता है।  मतदाता को  अभी भी विश्वास है कि मोदी है तो संभव है।  

बिपिन चंद्र जोशी 
बंगलौर 

टिप्पणियाँ

  1. सही बात है लोकतंत्र के लिए वर्तमान में इस तरह की कार्य नहीं होने चाहिए तभी लोकतंत्र सार्थक है क्योंकि उन्नाव कांड में जिस तरह उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप सामने आया है ऐसा लगता है कि पुलिस प्रशासन लाचार दिखाई दे रहा है कानून का राज समाप्त हो चुका है जंगलराज कायम है जबकि मामला उच्च न्यायालय में बाद में जाना चाहिए पहले उसको प्रशासन लेवल पर सॉर्ट आउट कर दिया जाना चाहिए l ---- सुशील जाटव, राज नगर एक्सटेंशन गाजियाबाद

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