स्वनाम धन्य ओजस्वी, गरिमामयी और दयामयी श्रीमती सुषमा स्वराज के जाने से राजनीति में शून्य पैदा हो गया है जिसकी पूर्ति नहो हो सकती है। जब देश कश्मीर में धारा 370 के ख़त्म किये जाने की ख़ुशी में जश्न मना रहा है तो ऐसे समय में राजनीति की पुरोधा श्रीमती सुषमा स्वराज देव लोक गमन से हम हतप्रभ हैं। सुषमा जी एक सफल राजनेता ही नहीं अपितु एक करुणामयी माँ भी थी। पता नहीं अपने राजनैतिक जीवन में उन्होनें कितने लोगों के मदत की इसका खाता रखना मुश्किल है। विदेशों में फसें संकटग्रस्त लोगों की मदत में हमेशा तत्पर सुषमाजी हमेशा याद की जायेंगीं। बेदाग़ राजनैतिक जीवन उनकी कामयाबी है
राजस्थान पत्रिका 1 अगस्त, 2019 के अंक में श्री कर्पूर चंद्र कुलिश का सम्पादकीय " रेवड़ियां कब तक " राजनैतिक पार्टियों के मर्म पर चोट है। मुझे पता नहीं है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, किसी भी राजनैतिक पार्टी का अध्यक्ष आदि ऐसे सम्पादकीय को पढ़ कर क्या सोचते हैं और उन्हें अपने कृत्य पर माननीयों का बिखरता अभिमान होता भी है या नहीं लेकिन एक आम मतदाता के नाते में मैं जरूर सोचता हूँ कि आखिर कब तक सत्ता को हथियाने के लिए राजनीति को ढाल बनाते रहेंगे। कमोवेश सभी पार्टियों का यही रवैया है। राजनीति को हथियार बनाकर सत्ता में काबिज पार्टियों की घोषणायें मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह होती हैं लेकिन हकीकत में ऐसा होता ही नहीं है। दिल्ली का मतदाता होने के नाते मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुख्यमंत्री केजरीवाल गत सालों में बड़ी-बड़ी घोषणायें करते रहे जो सिर्फ कागजी थी। अपने वायदों पर विफल होने पर मोदी सरकार को खूब कोसा। जी भरकर घोषणायें लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया कि जमीनी स्तर पर कैसे लागू किया जाये। अपनी हर कमी और विफलता के लिए मोदी को ...
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