संदेश

स्वनाम  धन्य  ओजस्वी, गरिमामयी  और दयामयी श्रीमती सुषमा स्वराज के जाने से राजनीति में शून्य पैदा हो गया है जिसकी पूर्ति नहो हो सकती है।   जब देश कश्मीर में धारा 370 के ख़त्म किये जाने की ख़ुशी में जश्न मना रहा है तो ऐसे समय में राजनीति की पुरोधा श्रीमती सुषमा स्वराज देव लोक गमन से हम हतप्रभ हैं।  सुषमा जी एक सफल राजनेता ही नहीं अपितु एक करुणामयी माँ भी थी।  पता नहीं अपने राजनैतिक जीवन में उन्होनें कितने लोगों के मदत की इसका खाता रखना मुश्किल है।  विदेशों में फसें संकटग्रस्त लोगों की मदत में हमेशा तत्पर सुषमाजी हमेशा याद की जायेंगीं। बेदाग़  राजनैतिक जीवन उनकी कामयाबी है 

आरटीआई की सार्थकता या मजाक

मैंने रेलवे बोर्ड के जन सूचना अधिकारी से आरटीआई के माध्यम से (1 ) कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम आन इमरजेंसी (सी.टी.एस.ई.) में 14 जुलाई, 2016 के बाद जो भी आदेश/शुद्धिपत्र/सुधार आदि हुए हैं की सत्यापित प्रतिलिपि,  (2 ) सी.टी.एस.ई. बेंगलुरु में प्रारम्भ हुआ  या नहीं जैसी कुछ सूचनायें मांगी थी।  हैरत और आश्चर्य की बात है की रेलवे बोर्ड ने मुझसे कहा है की मुझे मांगी गयी सूचना की प्रतिलिपि लेने के लिए रेलवे बोर्ड, दिल्ली आना होगा।  मैं बेंगलुरु में हूँ और मेरे हार्ट में दो स्टंट और एक कैप पड़े हैं।  रेलवे की 34 साल की सेवा के बाद भी मैं बेंगलुरु में अपने इलाज के लिए प्राइवेट हॉस्पिटल के चक्कर लगा रहा हूँ जबकि 80 हजार रुपये सेवानिवृति के बाद इलाज़  के लिए ग्रेचुएटी से काटे जा चुके हैं।  सरकारी योजनायें  कागजों में बहुत ही आकर्षक और लुभावनी होती है लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है।  उन योजनाओं को लागू करने में अफसरसाही और बाबूगिरी इतनी जटिलता पैदा कर देते हैं कि योजनायें दिवास्वप्न साबित होती हैं।  

माननीयों का बिखरता अभिमान

माननीयों का बिखरता अभिमान  माननीय उच्चत्तम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश श्री  रंजन गोगई ने उन्नाव बलात्कार कांड में जिस तेजी और कठोर रूख अपनाते हुए पुलिस और प्रशासन के लिए समय सीमा निर्धारित की है, प्रसंशनीय है।  उच्चत्तम न्यायालय  के इस निर्णय और रूख से लोक तंत्र की गरिमा मजबूत हुई और न्याय पालिका पर विश्वास जगा है।  कोर्ट के आदेश ने विधायक महोदय के रसूख और अभिमान  चूलें हिला कर रख दी।  लेकिन हमारी पुलिस की व्यवस्था और प्रणाली पर एक प्रश्न चिन्ह जो हमेशा से लगा रहा वह और बड़ा हो गया।  यह राजनीति की नाव पर सवार होकर सत्ता पर काबिज तथाकथित और छद्मवेशी लोगों का पुलिस और प्रशासन पर दबाव और प्रभाव ही  है की बलात्कार पीड़िता की 9 माह तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई और 02 साल तक ट्रायल नहीं होने दिया। यहां तक की पीड़िता का प्रधान न्यायाधीश को लिखे आवेदन को भी दबा दिया गया।  जब इतना सब हो गया तो तब सत्तारूढ़ पार्टी ने विधायक महोदय को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जबकि यह काम आज से दो साल पहले पार्टी ने कर देना चाहिए था।  क्यों...
राजस्थान पत्रिका 1 अगस्त, 2019 के अंक में श्री कर्पूर चंद्र कुलिश का सम्पादकीय " रेवड़ियां कब तक " राजनैतिक पार्टियों के मर्म पर चोट है।  मुझे पता नहीं है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, किसी भी राजनैतिक पार्टी का अध्यक्ष आदि ऐसे सम्पादकीय को पढ़ कर क्या सोचते हैं और उन्हें अपने कृत्य पर माननीयों का बिखरता अभिमान होता भी है या नहीं लेकिन एक आम मतदाता के नाते में मैं जरूर सोचता हूँ कि आखिर कब तक सत्ता को हथियाने के लिए राजनीति को ढाल बनाते रहेंगे।  कमोवेश सभी पार्टियों का यही रवैया है।  राजनीति को हथियार बनाकर सत्ता में काबिज पार्टियों की घोषणायें मुंगेरी लाल के हसीन सपने की तरह होती हैं लेकिन हकीकत में ऐसा होता ही नहीं है।  दिल्ली का मतदाता होने के नाते मैं यह कहना चाहता हूँ कि मुख्यमंत्री केजरीवाल गत सालों में बड़ी-बड़ी घोषणायें करते रहे जो सिर्फ कागजी थी।  अपने वायदों पर विफल होने पर मोदी सरकार को खूब कोसा।  जी भरकर घोषणायें लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया कि जमीनी स्तर पर कैसे लागू किया जाये। अपनी हर कमी और विफलता के लिए मोदी को ...

कश्मीर के लिए

राजस्थान पत्रिका के ३१ जुलाई, २०१९ के संस्करण  में मूर्धन्य पत्रकार श्री भुवनेश जैन का "आतंकवाद से दूरी बनाने लगे कश्मीरी युवा" सम्पादकीय लेख प्रकाशित हुआ जो निःसंदेह सत्य और सर्वथा उचित लेख है।  सम्पादकीय लेख में श्री भुवनेश जैन ने कश्मीर घाटी की आर्थिक बदहाली और युवाओं की मनोदशा का उल्लेख करते हुए लिखा है की क्यों कश्मीर घाटी बदहाली के कगार पर आ गई, कश्मीरी युवा क्यों दिग्भ्रमित हो गए और इस सबके पीछे कौन लोग जिम्मेदार हैं? पिछले  पांच साल में एनडीए सरकार ने घाटी के युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए जो भगीरथ प्रयास किये हैं वह तो काबिलेतारीफ हैं ही लेकिन दूसरी ओर सेना और सुरक्षा एजेंसियों का मनोबल जिसे मौकापरस्त नेताओं और तथाकथित मानवाधिकार आयोग  ने बुरी तरह से तोड़ कर  था, को बनाये रखने के लिए मोदी सरकार ने सेना और सुरक्षाबलों को परिस्थिति के अनुसार कार्यवाही करने के लिए खुली छूट दी।  कार्यवाही के  लिए अब सेना और सुरक्षाबलों को केंद्र में बैठे नेताओं के आदेश या इच्छा  प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है। से...